Monday, May 31, 2021

অনুবাদ সংখ্যা || কে সচ্চিদানন্দন-এর কবিতা অনুবাদে দেবলীনা চক্রবর্তী

|| সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন ||

কে সচ্চিদানন্দন-এর কবিতা অনুবাদে দেবলীনা চক্রবর্তী 

কবি পরিচিতি : কে সচ্চিদানন্দন (১৯৪6) একজন ভারতীয় কবি  এবং সমালোচক, মালায়ালাম এবং ইংরেজি এই দুই ভাষায় তার কলমের অবাধ যাতায়াত। মালায়ালাম ভাষার আধুনিক কবিতার প্রবর্তক তিনি, দ্বিভাষিক সাহিত্য সমালোচক, নাট্যকার, সম্পাদক, কলাম লেখক এবং অনুবাদক কে সচ্চিদানন্দন  ভারতীয় সাহিত্য জার্নালের প্রাক্তন সম্পাদক এবং সাহিত্য আকাদেমির প্রাক্তন সম্পাদক। তিনি ধর্মনিরপেক্ষ বর্ণবিরোধী বিষয়ে, পরিবেশ ও মানবাধিকার এর মতো গুরুত্বপূর্ণ সমসাময়িক বিষয়গুলিতে সুপরিচিত বক্তা। আজ তাঁর মূল মালায়ালাম তিনটি ( মূল লেখাগুলির ইংরেজি অনুবাদ স্বয়ং কবির এবং ইংরেজি থেকে হিন্দি অনুবাদ করেছেন বোমেশ শুক্লা ) লেখার অনুবাদ করার যথাযথ চেষ্টা করলাম। 

शाकुंतलम / के० सच्चिदानंदन

हर प्रेमी अभिशप्त है
भूल जाने को, कम से कम कुछ देर के लिए
अपनी स्त्री को : जैसे विस्मरण की नदी
अपने ही प्यार पर बाढ़ ला दे

हर प्रेमिका अभिशप्त है
तब तक भुला दिए जाने को जब तक उसका रहस्य
स्मृति के जाल में फँस नहीं जाता

प्रत्येक शिशु अभिशप्त है
पितृहीन बड़ा होने को
शेर के मुँह में अपना हाथ डालकर


অনুবাদ : শকুন্তলম্ 

প্রত্যেক প্রেমিক যেন অভিশপ্ত 
কেননা অন্তত কিছু সময়ের জন্য হলেও
নিজের স্ত্রী'কে ভুলে যাওয়া,
যেন সে এক বিস্মরণের নদী 
নিজেই প্রেমের পাথারে প্রলয় ডেকে আনে

প্রত্যেক প্রেমিকাও হলো অভিশপ্ত 
ততক্ষণ নিজেদের ভুলিয়ে রাখতে সক্ষম যতক্ষণ না তার রহস্য স্মৃতির জালে জড়িয়ে পরে 

প্রত্যেক শিশুও হলো অভিশপ্ত 
পিতৃহীন বড় হয়ে ওঠার জন্য 
 বাঘের হাঁ মুখের সামনে নিবেদিত সে এক প্রাণ।


हिन्दू / के० सच्चिदानंदन

मैं एक श्रेष्ट हिन्दू हूँ
मैं कुछ नहीं जानता
कोणार्क या खजुराहो के बारे में
मैंने कामसूत्र को छुआ तक नहीं है
मैं उल्टी करने लगूंगा अगर दुर्गा या सरस्वती को
नग्न देख लूँ हमारे देवी देवता कामहीन हैं
जो कुछ भी उनका था
हमने चढ़ा दिया काशी और कामाख्या पर
कबीर के राम को हमने कैद कर लिया
अयोध्या में, और गाँधी के राम को,
उनके अपने जन्मस्थल पर ज़िंदा जला दिया
भगवा ध्वज से अपनी आत्मा को बदल डालने के बाद
हरेक भिन्न रंग मुझे पागल कर देता है
निकर के नीचे मेरे पास....एक चाकू है
औरतों के सिर चूमने के लिए नहीं
काट डालने के लिए होते हैं

অনুবাদ : হিন্দু 

আমি একজন শ্রেষ্ট হিন্দু 
কারণ আমি কিছুই জানি না 
কোণারক বা খাজুরাহ সম্বন্ধে
আমি কামসূত্র কখনো ছুঁয়েও দেখি নি 
আমার পিত্ত উঠে আসে যদি আমি 
দেবী দূর্গা বা সরস্বতীকে বস্ত্রহীন দেখে ফেলি 
আমাদের পূজিত দেব - দেবীগণ ছিলেন কামহীন
আর যদি কিছু থেকেও থাকে তা আমি বিসর্জন দিয়ে এসেছি কাশি ও কামাখ্যার সিদ্ধ স্থানে 
কবীরের ' রাম ' কে আমরা বন্দী করে রেখেছি 
অযোধ্যায় আর গান্ধীজির ' রাম ' কে জ্যান্ত জ্বালিয়ে দিয়েছি তাঁরই সমাধিস্থলে 
গেরুয়া ধ্বজা গায়ে জড়িয়ে নিজের আত্মশুদ্ধির পর
 অন্য যে কোনো রং উন্মাদ করে দেয় আমায়
 আমার আস্তিনের নিচে .... একটা ছোরা আছে 
 নারীর সম্মান রক্ষার জন্য নয় ...
  কেটে ফেলার জন্য রাখা থাকে।
  

राष्ट्र / के० सच्चिदानंदन

राष्ट्र ने मुझसे कहा
तुम मेरे ऋणी हो
हवा के लिए जिसमें तुम साँस लेते हो
पानी के लिए जो तुम पीते हो
खाने की रोटी के लिए
चलने-फिरने की सड़क के लिए
बैठने की ज़मीन के लिए

मैंने राष्ट्र पूछा
तब जवाब कौन देगा ?
मेरी माँ को जिनका गला घोंट दिया गया
मेरी बहन को जिसने ज़हर पी लिया
दादी को जो भीख माँगती भटकती रही
मेरे पिता को जो भूख से मर गए
मेरे भाई को जो तुम्हें आज़ाद कराता हुआ जेल चला गया

मैं किसी खेमे की नहीं हूँ, हवा ने कहा
कोई मेरा मालिक नहीं, पानी ने कहा
मैं ज़मीन से पैदा हुई, रोटी बोली
मैं सीमाओं की परवाह नहीं करती, सड़क ने कहा
घास का कोई दोष नहीं होता, ज़मीन ने कहा

तब प्यार के साथ
राष्ट्र ने मुझे ऊपर उठा लिया
गोद में और कहा
अब क्या तुम मानते हो कि राष्ट्र सचाई है ?
लहुलुहान गर्दन से गिरता ख़ून ज़मीन पर फैल गया
' राष्ट्र की जय हो '


অনুবাদ : রাষ্ট্র

 রাষ্ট্র আমাকে বললো,
 তুমি আমার কাছে ঋণী
 শুদ্ধ বাতাসের জন্য যা তুমি শ্বাসে গ্রহণ করো
 জলের জন্য যা তুমি পান করো
 রুটির জন্য যা তুমি ভক্ষণ করো
 চলা ফেরার রাস্তার জন্য 
 পায়ের তলার জমি বাসস্থানের জন্য 

আমি যদি রাষ্ট্রকে প্রশ্ন করি 
তবে কে উত্তর দেবে ? 
যে আমার মাকে টুটি চেপে মেরেছে
আমার বোন যে বিষ খেলো
বুড়ি দাদী যে ভিক্ষার ঝুলি হাতে ফিরেছে
আমার বাবা যে খিদের জ্বালায় মরেছে
আমার ভাই যে তোমায় স্বাধীন করতে গিয়ে জেল খেটেছিল

তখনই
আমি কারুর দলে নয় ... হাওয়া বললো
আমার কেউ প্রভু নেই .... জল বললো
আমি মাটির বুকে জন্মেছি ... রুটি বললো
আমায় কোন সীমারেখা বাঁধতে পারে না... রাস্তা বললো
ঘাসের কোন দোষ থাকে না .... জমিন বললো

 রাষ্ট্র আমাকে সস্নেহে
কোলে তুলে নিয়ে বললো 
এখন কি তুমি রাষ্ট্রের বৈধতা স্বীকার করছো ?
তখনই রক্তাক্ত গর্দান থেকে ফোঁটা ফোঁটা রক্ত ভিজিয়ে দিতে লাগলো মাটি ...

" রাষ্ট্রের জয় হোক "


অনুবাদ সংখ্যা || ড. বি এস এম মুর্তি-র কবিতা অনুবাদে মাসুদুল হক

|| সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন ||

ড. বি এস এম মুর্তি-র কবিতা অনুবাদে মাসুদুল হক 

কবি পরিচিতি : ড. বিএসএম মুর্তি, ১৯৩৯ সালে জন্মগ্রহণকারী বিশিষ্ট বিহারী লেখক। যিনি নিপুণতার সঙ্গে একবিংশ শতাব্দীতর এই সময়ে তার দক্ষতার পরিচয় দিচ্ছেন।তিনি মঙ্গল মুর্তি নামে খ্যাতিমান। মূলত কবি, লেখক, জীবনীবিদ এবং অনুবাদক হিসাবে খ্যাতি অর্জন করেছেন।  তার  পিতা, পদ্মভূষণপ্রাপ্ত হিন্দি লেখক  আচার্য শিবপুজান সহায়।এই পরিণত বয়সেও ড. মুর্তি প্রতিদিন ৬ ঘণ্টারও বেশি সময় সৃজনশীল লেখার কাজে মগ্ন থাকেন। ১৯৯৯ সালে সাহিত্য একাডেমি থেকে তার দুটি ব‌ই প্রকাশিত হয়েছিল। ২০২০ সালে তার চারটি নতুন বই  প্রকাশিত হয়েছে। মুঙ্গারের (বিহার) একটি কলেজে ইংরেজির অধ্যাপক হিসেবে কর্মজীবন শুরু করে তিনি  ভারতে এবং বিদেশের বিশ্ববিদ্যালয়ে শিক্ষার্থীদের ইংরেজি ভাষা ও সাহিত্যের পাঠদানে অনন্য ভূমিকা পালন করেন। প্রায় চার দশক বিশ্ববিদ্যালয়ে পড়ানোর পর ১৯৯৯ সালে তিনি বিহারের মাগধ বিশ্ববিদ্যালয় থেকে ইংরেজি সাহিত্যের অধ্যাপক হিসাবে অবসর গ্রহণ করেন। পরবর্তীকালে তিনি ২০০২ সাল পর্যন্ত ইয়েমেনের তাইজ বিশ্ববিদ্যালয়ে আমেরিকান সাহিত্য ও ভাষাতত্ত্বের অধ্যাপক হিসাবে দায়িত্ব পালন করেন।বর্তমান লাখনৌতে বসবাস করছেন। 

मेरी तलाश 

नहीं, वहाूं मत ढूूंढना मुझे
मेरे चले जाने के बाि...
नहीं पमलूूंगा मैं तुमको
उस घूमने वाली कुसी िर
पजसके िपहयों िर सरकता
मैं अिनी दकताबों के िास
या किड़े वाली अलमारी
या जूते वाली रैक के िास
आसानी से चला जाता था
नहीं, मेरी छड़ी से भी मत िूछना कु छ
जो खोजेगी मुझको वहीं खड़ीखड़ी-
आईने के िास, और िूछेगी कूं घी से
मेरा हालरठकाना-,और आईना
मुस्कु राएगा चुिचाि मेरे सारे
अक्स अिने िहलू में गहरे छुिाए
टुकु रटुकु र ताकें गी मेरी दकताबें-
सब आलमारी के शीशों में से
जैसे उनको ़िूब िता है मैं
कहाूं गया हूं, िूरबहुत िूर कहीं-
उसी िुपनया में पजसका िूरा
ितारठकाना पलखा होता है-
उन्हीं के दकन्हीं िन्नों कहीं िर
इशारे से वे बताने की कोपशश करेंगी
दक तुम मुझे बस उधर ही ढूूंढना
दकताबों के उन्हीं िन्नों में कहीं
जहाूं मेरे पमलने की थोड़ी उम्मीि होगी
अिरों और शब्िों की कतारों के बीच
कहीं गहरी नींि में सोए हुए।

আমার খোঁজ 

না, আমাকে সেখানে খুঁজে পাবে না
আমি চলে যাওয়ার পরে ...
আমাকে দেখতে পাবে না
সেই ঘুরে বেড়ানো চেয়ারে
দুই চাকার উপর 
 আমার পছন্দের ব‌ই
বা কাঠের আলমারি
বা জুতোর তাকে
যেখানে যেতাম সহজে
না,আমার  আর লাঠির‌ও প্রয়োজন হবে না 
আমাকে ঠিক সেখানে দাঁড়িয়ে থাকতে দেখবে-
তবে তা আয়নার ধুলোয়, আর আমি ঘি মেখে
শরীরের যত্ন নিয়ে চলে যাব এবং আয়নায় 
 হাসতে থাকা আমার জীবন 
তোমার শরীরে প্রায়শই গভীর স্পর্শ করবে
আমার ব‌ইয়ের তাকে 
সমস্ত আলমারিতে--আমার স্পর্শ পাবে‍; 
যারা আমাকে আজ‌ও ভালবাসে 
 দূরে কোথাও যেখানে আমি আছি 
একই কুঁড়েঘরে
সেখানে প্রসাধনে মুখ রাঙানো সঙ্গী 
সে তার  নিজের জায়গা থেকে 
 অঙ্গভঙ্গিতে হয়তো কিছু বলার চেষ্টা করবে
তুমি আমাকে সেখানে খুঁজে পাবে
কোথাও বইয়ের একই পাতায় 
গভীর ঘুমে দূরে কোথাও 
শব্দ এবং শব্দসারির মাঝে
হয়তো আমাকে সামান্য দেখার সুযোগ পাবে। 

चरवाहा 

मैं नहीं हूं उन थोड़े से बहुतों में
भेंड़चाल के उस गड्डमड्ड झुूंि में
छोटी कटी सटकी िूूंछ वाली
पसर गोते एकिूसरे को धदकयाती-
बढती भागती िौड़ती भेंड़भेंपड़़ि की-
उस गड़बड़सड़बड़ भीड़ में-
और मुझको नहीं लगा मैं उनमें
दकसी एक काली भेंड़ जैसा भी हूं
अिनी िूूंछ सटकाए उनमें गुम हो जाने की
बेमतलब कोपशश करता हुआ
मैं तो खड़ा रहा वहीं चुिचाि
रस्ते केएक दकनारे
उस चरवाहे की बगल में
जो अिनी लाठी से ठोढी रटकाए
खड़ा था वहाूं न जाने क्या सोचता हुआ।


রাখাল

আমি ন‌ই সেই কয়েকজনের একজন 
যে ভেড়ার পালে
লেজ‌ওয়ালা ছোট্ট লাঠি নিয়ে 
অগোছালো ভিড়ে
এলোমেলো হেঁটে চলা 
ভেড়া পেটানো রাখালছেলে 
এবং আমি মনে করি না যে 
আমি ছিলাম তাদের মধ্যে 
কালো ভেড়ার মতো
যেখানে 
সে কারো গোঁফে হারিয়ে গেছে 
নিরলসভাবে
আমি সেখানে দাঁড়িয়ে ছিলাম 
এবং ভেবেছিলাম
এ পথ ধরেই
আসবে সেই 
আগামীর রাখালছেলে 
যে তার লাঠির সঙ্গে কথা বলে 
 এবং সে নিজে কী ভাবে তা না জেনেই
 সেখানে দাঁড়িয়ে থাকে।


सुनो िाथि!

जब कभी तुम्हें लगता है
एक घोर अूँधेरा अिने चारों ओर
जब कु छ नहीं सूझता तुम्हें
उस घुप्ि अूँधेरे में
जब साूंस घुट रही होती है तुम्हारी
उस काले अभेद्य अूँधेरे में
और दिल िूब रहा होता है तुम्हारा
तब कौन अचानक
तुम्हारा हाथ थाम लेता है?
कौन िेता है सहारा तुम्हें
तुम्हारी िीठ िर
अिना हाथ रख कर?
और तभी तुम्हें दिखाई िेती है
प्रकाश की एक दकरण फू टती हुई
उस काले घने अूँधेरे में भी
साूंस में साूंस लौट आती है तुम्हारी
एक मुस्कराहट छा जाती है तुम्हारे होठों िर
और चमक उठती हैं तुम्हारी आूँखें
जब उस दकरण की जोत से
तब तुम्हें नहीं लगता वह तुम्हीं हो?
तुम्हीं तो वह कृ ष्ण हो
और तुम्हीं हो अजुिन भी!
 
শোন!

তুমি যখনই ভাব
চারদিকে ছড়িয়ে পড়ে মোটামুটি অন্ধকার
তুমি যখন কিছুই বুঝতে পার না
সেই অন্ধকারে
যখন তোমার শ্বাস ফেটে যাচ্ছে
 অন্ধকারের আরো দুর্ভেদ্য আঁধারে
এবং তোমার হৃদয় মরে যাচ্ছে
তখন হঠাৎ কে
তোমার হাত ধরে?
কে তোমাকে সহায়তা দেয়
তোমাকে তোমার মৃত্যুর
 হাত থেকে বাঁচাতে?
এবং কেবল তখনই তুমি দেখতে পাবে
আলোর ঝলকানি
এমনকি সেই ঘোর ঘন অন্ধকারেও
তোমার  স্বামী ফিরে আসে নিভৃতে 
তোমার ঠোঁটে হাসি ফোটে 
এবং তোমার চোখে ঝলকানি ওঠে
জীবনবৃক্ষটি ধারণের সময়
তাহলে কি তুমি ভাববেন না তাকে?
তুমিই কৃষ্ণ
 তুমিই আগন্তুক!

Thursday, April 15, 2021

১-লা বৈশাখ সংখ্যা || উৎসর্গ সংখ্যা~যামিনী রায়

|| সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন || ১-লা বৈশাখ সংখ্যা ||  

আপনাকে অনেক শ্রদ্ধা ও ভালোবাসা জানালাম। বাঁকুড়া গর্বিত তাঁর কৃতি সন্তানকে ধারণ করে।

আমাদের ১লা বৈশাখ, ১৪২৮ (২০২১) সংখ্যা যামিনী রায় কে উৎসর্গ করা হলো।

আমরা সমস্ত লেখার সাথে তাঁর ছবির দেয়ালচিত্র ব্যবহার করেছি,সংগ্রহ করেছি গুগল দাদার  থেকে।


সূচি

সম্পাদকীয় নয় কিন্তু ____
দিশারী মুখোপাধ্যায় স্বপন রায় দেবযানী বসু মাসুদুল হক মোস্তফা মঈন রঞ্জন মৈত্র প্রদীপ চক্রবর্তী অলোক বিশ্বাস হরিৎ বন্দ্যোপাধ্যায় গোবিন্দ ব্যানার্জি তাপস গুপ্ত আলোক মণ্ডল কুশল ভৌমিক কল্যাণ চট্টোপাধ্যায় প্রকাশ ঘোষাল রথীন বন্দ্যোপাধ্যায় সুধাংশুরঞ্জন সাহা সুজিত রেজ রিতা মিত্র শীলা বিশ্বাস মন্দিরা ঘোষ চন্দ্রদীপা সেনশর্মা অনুরূপা পালচৌধুরী রনজিত্ পান্ডে শান্তম  রবীন বসু রাজশ্রী বন্দ্যোপাধ্যায় শ্যামশ্রী মুখার্জি সুকন্যা ভাট্টাচার্য্য শ্রাবণী গুপ্ত  সিদ্ধার্থ সাহা সোমা ঘোষ চিরঞ্জীব হালদার তনিমা হাজরা চঞ্চল নায়েক শম্পা ব্যানার্জি মনজুর রহমান নীলিমা দেব মৌমিতা মিত্র নবনীতা সরকার নিবিড় সাহা ভাস্বতী গোস্বামী কার্তিক ঢক্ পৃথা চট্টোপাধ্যায় পার্থ সারথি চক্রবর্তী  তুলি রহমান সোমা ব্যানার্জি শীর্ষেন্দু পাল 
সাত্যকি ঝুমা মল্লিক রানা সরকার স্বপন শর্মা বিশ্বজিৎ চিরঞ্জিৎ বৈরাগী বর্ণজিৎ বর্মন দেবলীনা চক্রবর্তী মৌসুমী রায় রুবি রায় রঞ্জনা বসু কৃষ্ণ রায় মধুমিতা রায় মিত্র বন্যা ব্যানার্জি হামিদুল ইসলাম অমিত চক্রবর্তী দেবাশীষ সরকার ইন্দ্রাণী পাল মানস চক্রবর্ত্তী 





১-লা বৈশাখ সংখ্যা || সম্পাদকীয় নয় কিন্তু~অভিজিৎ দাসকর্মকার

|| সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন || ১-লা বৈশাখ সংখ্যা ||  

অভিজিৎ দাসকর্মকার 

সম্পাদকীয় নয় কিন্তু ____

দেরি করে ফেললাম!__

পরিবার
আকাশপাড়ি,অথচ

ফাগুনে রাঙা বসন্ত,চড়ক দেখে নিলো
দেখলো
প্রচার—প্রসার—হুমকি—এবং

চৌকাঠে বেকসুর দাঁড়িয়ে রইল চৈত্র 

দই-চিঁড়ে আর ছাতু দিয়ে সংক্রান্তির ধুনো,ঘাঁটুফুল

বুনো রোদ ফোঁসফোঁস করছে ঘাড়ের কাছে,আমরা 
এখনো বেঘোরেই

এসো আমি তুমি সে ও তাহারা হয়ে পালন করি
১টি বিনা-সম্পাদনার সন্ধ্যা 
১টি অরাজনৈতিক শুভ নববর্ষের ক্যালেন্ডার ভরা শুভেচ্ছা, আর
ভালোবাসার আড়ালে সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন বয়ে চলুক
মালভূমি 
আবহমান ধারা,এবং

জীবনের উৎসব চলুক কবিতা হয়ে



১-লা বৈশাখ সংখ্যা || ২টি-কবিতায়~দিশারী মুখোপাধ্যায়

|| সাপ্তাহিক ব্ল্যাকহোল ওয়েবজিন || ১-লা বৈশাখ সংখ্যা ||   

দিশারী মুখোপাধ্যায়

ঘুমের মধ্যে হাঁটি 

ঘুমিয়ে পড়ার পর রাস্তাটা খুঁজে পাই। হাঁটতে শুরু করি।প্রায় প্রতিদিন 

ঠিকানা নিজে রাস্তায় নেমেছে।আমার সঙ্গে দেখা করতে চায়।আমি 
বিশ্বাস রাখি অবিশ্বাস একদিন হার স্বীকার করবে।জয় একটা ঘটনা মাত্র 

হেরে যাওয়ার নাড়িনক্ষত্র ঘেঁটে দেখেছি ,ষড়যন্ত্রের ক্র্যাচ অযোগ্যকে 
জেতায়।বিজয়ীর নাম যেইমাত্র ঘোষণা হয় পরাজিতের মুখ উজ্জ্বল হয় 
সে বোঝে, জয় আসলে তার।তার ছাড়া অন্য কারো নয় সংগ্রাম 

বকুলের তলা দিয়ে হাঁটি।রাস্তা একটু বেশিই বড়।তবু রোজ একটু একটু 
ছোট হচ্ছে।ঘুমের মধ্যে ঢুকেই হাঁটা শুরু করি।প্রতিদিন অল্প অল্প 
বিশ্বাসের দেহ পুষ্ট হয়।তোমার দেওদারু গাছের মাথা ক্রমে ক্রমে 
দূরবর্তী নক্ষত্রদেরও নজরে আসে।পৌঁছানো দিয়েই শুরু করব গল্প 


দরজার ইচ্ছে 

দরজার ইচ্ছে পরিস্ফুট ছিল না।হয়তো ইচ্ছেই ছিল না।বন্ধ করেছি 

অন্ধকারের শরীর খুলে খুলে দেখছি, তার ভাঁজে ভাঁজে লেখা আছে 
দরজার ইচ্ছের কথাই।সে কাউকে ডাকার জন্য নীরবতার ভাষা শিখেছে

একটা কড়কড়ে অনুভূতি নিজেকে খোঁজার জন্য খুঁজে নেয় চোখের মাধ্যম 
দুহাতের তালু সেটা পছন্দ করে না।রগড়ে দেয়।দরজার প্রেম 
বুঝে উঠবার কথা মানুষের নয়।মানুষ বাণিজ্যে বাঁচে।মরে।অভিশাপ 

হেডফোন কানে গুঁজে কবিতা শুনেছি।তখন কবিতা আমার মাথার 
মস্তিষ্ক অঞ্চলে ঢুকে গেছে।দিগন্ত বিস্তৃত জমি দখলে নিয়েছে 
ধ্বজা গেড়ে দিয়েছে।পবিত্র নারীর বুকে অপবিত্র হবার এক বিশুদ্ধ ইচ্ছে 
প্রকৃষ্ট নমুনা হয় ।দেখে নদী।দরজাকে চামচ দিয়ে দ্রবীভূত করে