কে সচ্চিদানন্দন-এর কবিতা অনুবাদে দেবলীনা চক্রবর্তী
কবি পরিচিতি : কে সচ্চিদানন্দন (১৯৪6) একজন ভারতীয় কবি এবং সমালোচক, মালায়ালাম এবং ইংরেজি এই দুই ভাষায় তার কলমের অবাধ যাতায়াত। মালায়ালাম ভাষার আধুনিক কবিতার প্রবর্তক তিনি, দ্বিভাষিক সাহিত্য সমালোচক, নাট্যকার, সম্পাদক, কলাম লেখক এবং অনুবাদক কে সচ্চিদানন্দন ভারতীয় সাহিত্য জার্নালের প্রাক্তন সম্পাদক এবং সাহিত্য আকাদেমির প্রাক্তন সম্পাদক। তিনি ধর্মনিরপেক্ষ বর্ণবিরোধী বিষয়ে, পরিবেশ ও মানবাধিকার এর মতো গুরুত্বপূর্ণ সমসাময়িক বিষয়গুলিতে সুপরিচিত বক্তা। আজ তাঁর মূল মালায়ালাম তিনটি ( মূল লেখাগুলির ইংরেজি অনুবাদ স্বয়ং কবির এবং ইংরেজি থেকে হিন্দি অনুবাদ করেছেন বোমেশ শুক্লা ) লেখার অনুবাদ করার যথাযথ চেষ্টা করলাম। शाकुंतलम / के० सच्चिदानंदन
हर प्रेमी अभिशप्त है
भूल जाने को, कम से कम कुछ देर के लिए
अपनी स्त्री को : जैसे विस्मरण की नदी
अपने ही प्यार पर बाढ़ ला दे
हर प्रेमिका अभिशप्त है
तब तक भुला दिए जाने को जब तक उसका रहस्य
स्मृति के जाल में फँस नहीं जाता
प्रत्येक शिशु अभिशप्त है
पितृहीन बड़ा होने को
शेर के मुँह में अपना हाथ डालकर
অনুবাদ : শকুন্তলম্
প্রত্যেক প্রেমিক যেন অভিশপ্ত
কেননা অন্তত কিছু সময়ের জন্য হলেও
নিজের স্ত্রী'কে ভুলে যাওয়া,
যেন সে এক বিস্মরণের নদী
নিজেই প্রেমের পাথারে প্রলয় ডেকে আনে
প্রত্যেক প্রেমিকাও হলো অভিশপ্ত
ততক্ষণ নিজেদের ভুলিয়ে রাখতে সক্ষম যতক্ষণ না তার রহস্য স্মৃতির জালে জড়িয়ে পরে
প্রত্যেক শিশুও হলো অভিশপ্ত
পিতৃহীন বড় হয়ে ওঠার জন্য
বাঘের হাঁ মুখের সামনে নিবেদিত সে এক প্রাণ।
हिन्दू / के० सच्चिदानंदन
मैं एक श्रेष्ट हिन्दू हूँ
मैं कुछ नहीं जानता
कोणार्क या खजुराहो के बारे में
मैंने कामसूत्र को छुआ तक नहीं है
मैं उल्टी करने लगूंगा अगर दुर्गा या सरस्वती को
नग्न देख लूँ हमारे देवी देवता कामहीन हैं
जो कुछ भी उनका था
हमने चढ़ा दिया काशी और कामाख्या पर
कबीर के राम को हमने कैद कर लिया
अयोध्या में, और गाँधी के राम को,
उनके अपने जन्मस्थल पर ज़िंदा जला दिया
भगवा ध्वज से अपनी आत्मा को बदल डालने के बाद
हरेक भिन्न रंग मुझे पागल कर देता है
निकर के नीचे मेरे पास....एक चाकू है
औरतों के सिर चूमने के लिए नहीं
काट डालने के लिए होते हैं
অনুবাদ : হিন্দু
আমি একজন শ্রেষ্ট হিন্দু
কারণ আমি কিছুই জানি না
কোণারক বা খাজুরাহ সম্বন্ধে
আমি কামসূত্র কখনো ছুঁয়েও দেখি নি
আমার পিত্ত উঠে আসে যদি আমি
দেবী দূর্গা বা সরস্বতীকে বস্ত্রহীন দেখে ফেলি
আমাদের পূজিত দেব - দেবীগণ ছিলেন কামহীন
আর যদি কিছু থেকেও থাকে তা আমি বিসর্জন দিয়ে এসেছি কাশি ও কামাখ্যার সিদ্ধ স্থানে
কবীরের ' রাম ' কে আমরা বন্দী করে রেখেছি
অযোধ্যায় আর গান্ধীজির ' রাম ' কে জ্যান্ত জ্বালিয়ে দিয়েছি তাঁরই সমাধিস্থলে
গেরুয়া ধ্বজা গায়ে জড়িয়ে নিজের আত্মশুদ্ধির পর
অন্য যে কোনো রং উন্মাদ করে দেয় আমায়
আমার আস্তিনের নিচে .... একটা ছোরা আছে
নারীর সম্মান রক্ষার জন্য নয় ...
কেটে ফেলার জন্য রাখা থাকে।
राष्ट्र / के० सच्चिदानंदन
राष्ट्र ने मुझसे कहा
तुम मेरे ऋणी हो
हवा के लिए जिसमें तुम साँस लेते हो
पानी के लिए जो तुम पीते हो
खाने की रोटी के लिए
चलने-फिरने की सड़क के लिए
बैठने की ज़मीन के लिए
मैंने राष्ट्र पूछा
तब जवाब कौन देगा ?
मेरी माँ को जिनका गला घोंट दिया गया
मेरी बहन को जिसने ज़हर पी लिया
दादी को जो भीख माँगती भटकती रही
मेरे पिता को जो भूख से मर गए
मेरे भाई को जो तुम्हें आज़ाद कराता हुआ जेल चला गया
मैं किसी खेमे की नहीं हूँ, हवा ने कहा
कोई मेरा मालिक नहीं, पानी ने कहा
मैं ज़मीन से पैदा हुई, रोटी बोली
मैं सीमाओं की परवाह नहीं करती, सड़क ने कहा
घास का कोई दोष नहीं होता, ज़मीन ने कहा
तब प्यार के साथ
राष्ट्र ने मुझे ऊपर उठा लिया
गोद में और कहा
अब क्या तुम मानते हो कि राष्ट्र सचाई है ?
लहुलुहान गर्दन से गिरता ख़ून ज़मीन पर फैल गया
' राष्ट्र की जय हो '
অনুবাদ : রাষ্ট্র
রাষ্ট্র আমাকে বললো,
তুমি আমার কাছে ঋণী
শুদ্ধ বাতাসের জন্য যা তুমি শ্বাসে গ্রহণ করো
জলের জন্য যা তুমি পান করো
রুটির জন্য যা তুমি ভক্ষণ করো
চলা ফেরার রাস্তার জন্য
পায়ের তলার জমি বাসস্থানের জন্য
আমি যদি রাষ্ট্রকে প্রশ্ন করি
তবে কে উত্তর দেবে ?
যে আমার মাকে টুটি চেপে মেরেছে
আমার বোন যে বিষ খেলো
বুড়ি দাদী যে ভিক্ষার ঝুলি হাতে ফিরেছে
আমার বাবা যে খিদের জ্বালায় মরেছে
আমার ভাই যে তোমায় স্বাধীন করতে গিয়ে জেল খেটেছিল
তখনই
আমি কারুর দলে নয় ... হাওয়া বললো
আমার কেউ প্রভু নেই .... জল বললো
আমি মাটির বুকে জন্মেছি ... রুটি বললো
আমায় কোন সীমারেখা বাঁধতে পারে না... রাস্তা বললো
ঘাসের কোন দোষ থাকে না .... জমিন বললো
রাষ্ট্র আমাকে সস্নেহে
কোলে তুলে নিয়ে বললো
এখন কি তুমি রাষ্ট্রের বৈধতা স্বীকার করছো ?
তখনই রক্তাক্ত গর্দান থেকে ফোঁটা ফোঁটা রক্ত ভিজিয়ে দিতে লাগলো মাটি ...
" রাষ্ট্রের জয় হোক "

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