ড. বি এস এম মুর্তি-র কবিতা অনুবাদে মাসুদুল হক
কবি পরিচিতি : ড. বিএসএম মুর্তি, ১৯৩৯ সালে জন্মগ্রহণকারী বিশিষ্ট বিহারী লেখক। যিনি নিপুণতার সঙ্গে একবিংশ শতাব্দীতর এই সময়ে তার দক্ষতার পরিচয় দিচ্ছেন।তিনি মঙ্গল মুর্তি নামে খ্যাতিমান। মূলত কবি, লেখক, জীবনীবিদ এবং অনুবাদক হিসাবে খ্যাতি অর্জন করেছেন। তার পিতা, পদ্মভূষণপ্রাপ্ত হিন্দি লেখক আচার্য শিবপুজান সহায়।এই পরিণত বয়সেও ড. মুর্তি প্রতিদিন ৬ ঘণ্টারও বেশি সময় সৃজনশীল লেখার কাজে মগ্ন থাকেন। ১৯৯৯ সালে সাহিত্য একাডেমি থেকে তার দুটি বই প্রকাশিত হয়েছিল। ২০২০ সালে তার চারটি নতুন বই প্রকাশিত হয়েছে। মুঙ্গারের (বিহার) একটি কলেজে ইংরেজির অধ্যাপক হিসেবে কর্মজীবন শুরু করে তিনি ভারতে এবং বিদেশের বিশ্ববিদ্যালয়ে শিক্ষার্থীদের ইংরেজি ভাষা ও সাহিত্যের পাঠদানে অনন্য ভূমিকা পালন করেন। প্রায় চার দশক বিশ্ববিদ্যালয়ে পড়ানোর পর ১৯৯৯ সালে তিনি বিহারের মাগধ বিশ্ববিদ্যালয় থেকে ইংরেজি সাহিত্যের অধ্যাপক হিসাবে অবসর গ্রহণ করেন। পরবর্তীকালে তিনি ২০০২ সাল পর্যন্ত ইয়েমেনের তাইজ বিশ্ববিদ্যালয়ে আমেরিকান সাহিত্য ও ভাষাতত্ত্বের অধ্যাপক হিসাবে দায়িত্ব পালন করেন।বর্তমান লাখনৌতে বসবাস করছেন।
मेरी तलाश
नहीं, वहाूं मत ढूूंढना मुझे
मेरे चले जाने के बाि...
नहीं पमलूूंगा मैं तुमको
उस घूमने वाली कुसी िर
पजसके िपहयों िर सरकता
मैं अिनी दकताबों के िास
या किड़े वाली अलमारी
या जूते वाली रैक के िास
आसानी से चला जाता था
नहीं, मेरी छड़ी से भी मत िूछना कु छ
जो खोजेगी मुझको वहीं खड़ीखड़ी-
आईने के िास, और िूछेगी कूं घी से
मेरा हालरठकाना-,और आईना
मुस्कु राएगा चुिचाि मेरे सारे
अक्स अिने िहलू में गहरे छुिाए
टुकु रटुकु र ताकें गी मेरी दकताबें-
सब आलमारी के शीशों में से
जैसे उनको ़िूब िता है मैं
कहाूं गया हूं, िूरबहुत िूर कहीं-
उसी िुपनया में पजसका िूरा
ितारठकाना पलखा होता है-
उन्हीं के दकन्हीं िन्नों कहीं िर
इशारे से वे बताने की कोपशश करेंगी
दक तुम मुझे बस उधर ही ढूूंढना
दकताबों के उन्हीं िन्नों में कहीं
जहाूं मेरे पमलने की थोड़ी उम्मीि होगी
अिरों और शब्िों की कतारों के बीच
कहीं गहरी नींि में सोए हुए।
আমার খোঁজ
না, আমাকে সেখানে খুঁজে পাবে না
আমি চলে যাওয়ার পরে ...
আমাকে দেখতে পাবে না
সেই ঘুরে বেড়ানো চেয়ারে
দুই চাকার উপর
আমার পছন্দের বই
বা কাঠের আলমারি
বা জুতোর তাকে
যেখানে যেতাম সহজে
না,আমার আর লাঠিরও প্রয়োজন হবে না
আমাকে ঠিক সেখানে দাঁড়িয়ে থাকতে দেখবে-
তবে তা আয়নার ধুলোয়, আর আমি ঘি মেখে
শরীরের যত্ন নিয়ে চলে যাব এবং আয়নায়
হাসতে থাকা আমার জীবন
তোমার শরীরে প্রায়শই গভীর স্পর্শ করবে
আমার বইয়ের তাকে
সমস্ত আলমারিতে--আমার স্পর্শ পাবে;
যারা আমাকে আজও ভালবাসে
দূরে কোথাও যেখানে আমি আছি
একই কুঁড়েঘরে
সেখানে প্রসাধনে মুখ রাঙানো সঙ্গী
সে তার নিজের জায়গা থেকে
অঙ্গভঙ্গিতে হয়তো কিছু বলার চেষ্টা করবে
তুমি আমাকে সেখানে খুঁজে পাবে
কোথাও বইয়ের একই পাতায়
গভীর ঘুমে দূরে কোথাও
শব্দ এবং শব্দসারির মাঝে
হয়তো আমাকে সামান্য দেখার সুযোগ পাবে।
चरवाहा
मैं नहीं हूं उन थोड़े से बहुतों में
भेंड़चाल के उस गड्डमड्ड झुूंि में
छोटी कटी सटकी िूूंछ वाली
पसर गोते एकिूसरे को धदकयाती-
बढती भागती िौड़ती भेंड़भेंपड़़ि की-
उस गड़बड़सड़बड़ भीड़ में-
और मुझको नहीं लगा मैं उनमें
दकसी एक काली भेंड़ जैसा भी हूं
अिनी िूूंछ सटकाए उनमें गुम हो जाने की
बेमतलब कोपशश करता हुआ
मैं तो खड़ा रहा वहीं चुिचाि
रस्ते केएक दकनारे
उस चरवाहे की बगल में
जो अिनी लाठी से ठोढी रटकाए
खड़ा था वहाूं न जाने क्या सोचता हुआ।
রাখাল
আমি নই সেই কয়েকজনের একজন
যে ভেড়ার পালে
লেজওয়ালা ছোট্ট লাঠি নিয়ে
অগোছালো ভিড়ে
এলোমেলো হেঁটে চলা
ভেড়া পেটানো রাখালছেলে
এবং আমি মনে করি না যে
আমি ছিলাম তাদের মধ্যে
কালো ভেড়ার মতো
যেখানে
সে কারো গোঁফে হারিয়ে গেছে
নিরলসভাবে
আমি সেখানে দাঁড়িয়ে ছিলাম
এবং ভেবেছিলাম
এ পথ ধরেই
আসবে সেই
আগামীর রাখালছেলে
যে তার লাঠির সঙ্গে কথা বলে
এবং সে নিজে কী ভাবে তা না জেনেই
সেখানে দাঁড়িয়ে থাকে।
सुनो िाथि!
जब कभी तुम्हें लगता है
एक घोर अूँधेरा अिने चारों ओर
जब कु छ नहीं सूझता तुम्हें
उस घुप्ि अूँधेरे में
जब साूंस घुट रही होती है तुम्हारी
उस काले अभेद्य अूँधेरे में
और दिल िूब रहा होता है तुम्हारा
तब कौन अचानक
तुम्हारा हाथ थाम लेता है?
कौन िेता है सहारा तुम्हें
तुम्हारी िीठ िर
अिना हाथ रख कर?
और तभी तुम्हें दिखाई िेती है
प्रकाश की एक दकरण फू टती हुई
उस काले घने अूँधेरे में भी
साूंस में साूंस लौट आती है तुम्हारी
एक मुस्कराहट छा जाती है तुम्हारे होठों िर
और चमक उठती हैं तुम्हारी आूँखें
जब उस दकरण की जोत से
तब तुम्हें नहीं लगता वह तुम्हीं हो?
तुम्हीं तो वह कृ ष्ण हो
और तुम्हीं हो अजुिन भी!
শোন!
তুমি যখনই ভাব
চারদিকে ছড়িয়ে পড়ে মোটামুটি অন্ধকার
তুমি যখন কিছুই বুঝতে পার না
সেই অন্ধকারে
যখন তোমার শ্বাস ফেটে যাচ্ছে
অন্ধকারের আরো দুর্ভেদ্য আঁধারে
এবং তোমার হৃদয় মরে যাচ্ছে
তখন হঠাৎ কে
তোমার হাত ধরে?
কে তোমাকে সহায়তা দেয়
তোমাকে তোমার মৃত্যুর
হাত থেকে বাঁচাতে?
এবং কেবল তখনই তুমি দেখতে পাবে
আলোর ঝলকানি
এমনকি সেই ঘোর ঘন অন্ধকারেও
তোমার স্বামী ফিরে আসে নিভৃতে
তোমার ঠোঁটে হাসি ফোটে
এবং তোমার চোখে ঝলকানি ওঠে
জীবনবৃক্ষটি ধারণের সময়
তাহলে কি তুমি ভাববেন না তাকে?
তুমিই কৃষ্ণ
তুমিই আগন্তুক!

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